1. "वही सन तेरह सौ पैंतालीस का साल। जाने किस गिरजे की घड़ी में यंत्रयुग के स्वागत का घंटा बजा था। किंतु किसे पता था कि एक दिन वही घड़ी मध्ययुग के महाकाल के कल्पना सौंध को जमींदोज कर देगी? घंटा, मिनट और सैकंड में महाकाल को टुकड़े- टुकड़े करके समय के क्षय का अक्षय इतिहास तैयार करेगी? महाकाल की कल्पना को चूर चूर करके शायद इसी घड़ीने पहली बार यह बताया कि आकाश चूमते गिरजे की गुम्बदे, मस्जिदों की मीनारे, मन्दिरो के शिखर न तो शाश्वत है, न सनातन । उसने बताया- धर्म , देवता और ब्राह्मणों के रौब-दाब सब कल्पना है, छलना है, सत्य है सिर्फ पांवो तले जमीन और भले-बुरे मिलावटवाले मनुष्य। 'सर्वोपरि सत्य मनुष्य है' - यह बात चंडीदास से बहुत पहले कह गई है घडी। वह कह गई, सत्य केवल मनुष्य ही नही उसके चौबीस घंटे सत्य है, चौदह सौ चालीस मिनट सत्य है, छियासी हजार चार सौ सेकंड भी सत्य है। ~ साहब बीबी गुलाम"
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Bimal Mitra, साहब बीबी और ग़ुलाम
2. "हवा नाम को भी नहीं थी, एक पत्ता तक नहीं हिल रहा था।"
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Khushwant Singh, Jannat Aur Anya Kahaniyan:
3. "रात यूं दिल में तेरी खोई हुई याद आई जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए जैसे सहराओं में हौले से चले बादे-नसीम जैसे बीमार को बेवजह करार आ जाए ।"
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Khushwant Singh, Khushwantnama: Mere Jiwan ke Sabak
4. "लड़की : यह रही तुम्हारी अंगूठी । मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती क्योंकि मैं किसी और से प्यार करती हूं । लड़का : वह है कौन ? लड़की : (घबड़ाकर) तुम कहीं उसे मारने की कोशिश तो नहीं करोगे । लड़का : नहीं, बल्कि मैं उसे अंगूठी बेचने की कोशिश करूंगा ।"
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Khushwant Singh, Khushwantnama: Mere Jiwan ke Sabak